लखीमपुर: सनातन धर्म सरस्वती शिशु मंदिर में जय श्री रघुवीर समर्थ को दी गई श्रद्धांजलि

लखीमपुर। सनातन धर्म सरस्वती शिशु मंदिर मिश्राना में जय-जय श्री रघुवीर समर्थ की पुण्य-तिथि मनाई गई। जिसमें हिन्दू पद पादशाही के संस्थापक छत्रपति शिवाजी के गुरु, समर्थ स्वामी रामदास का नाम भारत के साधु-सन्तों व विद्वत समाज में सुविख्यात है। महाराष्ट्र तथा सम्पूर्ण दक्षिण भारत में तो प्रत्यक्ष हनुमान् जी के अवतार के रूप में उनकी पूजा की जाती है। उनके जन्मस्थान जाम्बगाँव में उनकी मूर्ति मन्दिर में स्थापित की गयी है। यद्यपि मूर्ति स्थापना के समय अनेक विद्वानों ने कहा कि मनुष्यों की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा देवताओं के समान नहीं की जा सकती; पर हनुमान् जी के अवतार वाली जन मान्यता के सम्मुख उन्हें झुकना पड़ा।
स्वामी रामदास का जन्म चैत्र शुक्ल 9, विक्रम सम्वत् 1665 (1608 ई0) को दोपहर में हुआ था। यही समय श्रीराम के जन्म का भी है। सूर्याजी पन्त तथा राणूबाई के घर में जन्मे इस बालक का नाम नारायण रखा गया। नारायण बचपन में बहुत शरारती थे। सात वर्ष की अवस्था में उन्होंने हनुमान् जी को अपना गुरु मान लिया। इसके बाद तो उनका अधिकांश समय हनुमान् मन्दिर में पूजा में बीतने लगा।
एक बार उन्होंने निश्चय किया कि जब तक मुझे हनुमान् जी दर्शन नहीं देंगे, तब तक मैं अन्न जल ग्रहण नहीं करूँगा। यह संकल्प देखकर हनुमान् जी प्रकट हुए और उन्हें श्रीराम के दर्शन भी कराये। रामचन्द्र जी ने उनका नाम नारायण से बदलकर रामदास कर दिया।
जब घर वाले उनका विवाह करने लगे, तो वे मण्डप से भागकर गोदावरी के पास टाकली गाँव में एक गुफा में रहकर तप करने लगे। भिक्षा से जो सामग्री मिलती, उसी से वे अपना जीवनयापन करते थे। बारह साल तक कठोर तप करने के बाद वे तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। यात्रा में उन्होंने हिन्दुओं की दुर्दशा तथा उन पर हो रहे मुसलमानों के भीषण अत्याचार देखे। वे समझ गये कि हिन्दुओं के संगठन के बिना भारत का उद्धार नहीं हो सकता।