कन्नौज : स.शि.मं.पकड़िया टोला में मनाया गया क्रान्तिवीर गोपी मोहन साहा जी का बलिदान दिवस
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यद्यपि दुर्भाग्यवश उसका यह प्रयास सफल नहीं हो पाया। टेगार्ट को यमलोक भेजने का निश्चय करते ही गोपीमोहन ने निशाना लगाने का अभ्यास प्रारम्भ कर दिया। वह चाहता था कि उसकी एक गोली में ही उसका काम तमाम हो जाये। गोपी ने फिर गोलियाँ चलायीं, इससे तीन लोग घायल हो गये; लेकिन अन्ततः वह पकड़ा गया।
पकड़े जाने पर उसे पता लगा कि उसने जिस अंग्रेज को मारा है, वह टेगार्ट नहीं अपितु उसकी शक्ल से मिलता हुआ एक व्यापारिक कम्पनी का प्रतिनिधि है। इससे गोपी को बहुत दुख हुआ कि उसके हाथ से एक निरपराध की हत्या हो गयी; पर अब कुछ नहीं हो सकता था।
एक मार्च, 1924 भारत माँ के अमर सपूत गोपीमोहन साहा ने फाँसी के फन्दे को चूम लिया। मृत्यु का कोई भय न होने के कारण उस समय तक उसका वजन दो किलो बढ़ चुका था। फाँसी के बाद उसके शव को लेने के लिए गोपी के भाई के साथ नेताजी सुभाषचन्द्र बोस भी जेल गये थे।