बाहुबल का खेल वेटलिफ्टिंग

बाहुबल का खेल वेटलिफ्टिंग

लखनऊ। अक्सर हम ओलंपिक, राष्ट्रमण्डल खेलों या अन्य प्रतियोगिताओं में वेटलिफ्टिंग के खिलाड़ियों को अपने वजन से दो-तीन गुना अधिक भार उठाते हुए देखते हैं, जिनको देखकर हमारे मन में भी ये सवाल आता होगा कि उनके पास इतनी शक्ति आखिर आती कैसे है और इस खेल की शुरुआत आखिर कैसे हुई होगी? वैसे तो यह खेल अब पूरे विश्व भर में लोकप्रिय हो चुका है किन्तु पुराने समय में लोग इसे मात्र मनोरंजन का साधन मानते थे। दरअसल, पुराने जमाने में शारीरिक रूप से शक्तिशाली लोग भारी पत्थरों को उठाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते थे। वहीं, समय के साथ इसका स्वरूप बदला और यह एक वेटलिफ्टिंग या भारोत्तोलन का खेल बन चुका है जो ताकत और तकनीक की परीक्षा से संबंधित एक प्रकार का खेल है। जिसके खिलाड़ी को अच्छी सेहत के साथ ही मानसिक तौर पर भी मजबूत होने की जरूरत होती है।

वेटलिफ्टिंग का एक लंबा इतिहास रहा है। मिस्र, चीन, भारत और प्राचीन ग्रीस की सभ्यताओं में इसके साक्ष्य पाये गए हैं। जिसमें सबसे ज्यादा वजन उठाने की प्रतिस्पर्धा आयोजित की जाती रही होगी। वहीं, कई प्रागैतिहासिक जनजातियों के लिए, पुरुषार्थ की पारंपरिक परीक्षा एक विशेष चट्टान को उठाना था। इस तरह के मर्दानगी के पत्थर, कुछ पहले लिफ्टर के नाम के साथ, ग्रीस और स्कॉटिश महल में आज भी मौजूद हैं। जबकि जर्मनी, स्विट्जरलैंड, मोंटेनेग्रो के हाइलैंड्स और स्पेन के बास्क क्षेत्र में पत्थरों की प्रतिस्पर्धात्मक लिफ्टिंग अभी भी स्थानीय स्तर पर आयोजित की जाती हैं। ऐसे कई आयोजनों में विजेता घोषित करने के लिए एक निश्चित समय अवधि के भीतर लिफ्टों की लगातार संख्या का उपयोग किया जाता है।

18वीं और 19वीं शताब्दी में आधुनिक वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिता की उत्पत्ति मानी जाती है। जब पुरुषों द्वारा जर्मनी के यूजीन सैंडो और आर्थर सैक्सन, रूस के जॉर्ज हैकेन्सचिमिड और फ्रांस के लुई अपोलोन, जहां सर्कस और थिएटर में वेटलिफ्टिंग का प्रदर्शन किया जाता था। 1891 तक लंदन में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता होने लगी। 1896 के पुनर्जीवित ओलंपिक खेलों में वेटलिफ्टिंग कार्यक्रम शामिल थे, लेकिन उसके बाद इन आयोजनों को 1920 तक स्थगित कर दिया गया था। उस वर्ष, अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के सुझाव पर, अंतरराष्ट्रीय वेटलिफ्टिंग संघ (फेडरेशन हाल्टरोफाइल इंटरनेशनेल, एफएचआई) का गठन घटनाओं को नियमित करने और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा की निगरानी के लिए किया गया था। 1928 तक पहले के खेलों के एक और दो हाथ की लिफ्टों ने केवल दो हाथ की लिफ्टों को जगह दी थी, स्नैच, क्लीन एंड जर्क और क्लीन एंड प्रेस।

द्वितीय विश्व युद्ध से पहले के खेलों में, प्रमुख भारोत्तोलक फ्रेंच, जर्मन और मिस्र से थे। युद्ध के बाद 1953 तक अमेरिकी भारोत्तोलकों का दबदबा था। इसके बाद सोवियत और बल्गेरियाई भारोत्तोलकों ने विश्व रिकॉर्ड और चैंपियनशिप पर एक आभासी एकाधिकार का आयोजन किया। 1990 के दशक के अंत तक वेटलिफ्टिंग में प्रतिस्पर्धा करने वाले प्रमुख देश तुर्की, ग्रीस और चीन थे। विश्व चैंपियनशिप 1922-23 में आयोजित की गई थी और 1937 से, युद्ध के वर्षों को छोड़कर, और 1924 से 1936 तक यूरोपीय चैंपियनशिप आयोजित की गई थी। 2000 में ओलंपिक खेलों में महिलाओं के लिए एक वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिता को जोड़ा गया था। 1959 में वारसॉ में आयोजित विश्व वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में अमेरिकी भारोत्तोलक टॉमी कोनो ने क्लीन एंड जर्क लिफ्ट जीतकर विश्व मिडिलवेट चैंपियन बने। 1972 में प्रेस को छोड़ दिया गया था।

ओलंपिक में वेटलिफ्टिंग

वेटलिफ्टिंग को आधुनिक ओलंपिक खेलों के साथ शुरुआत से ही जोड़ा गया है। ये ट्रैक एंड फील्ड एथलेटिक्स में क्षेत्र की इवेंट के रूप में 1896 में ग्रीस के एथेंस में उद्घाटन संस्करण में शामिल किया गया था। 1896 के ओलंपिक में दो वेटलिफ्टिंग स्पर्धाएं थीं- एक हाथ से उठाना और दो हाथों से उठाना। ग्रेट ब्रिटेन के ल्युकेस्टोन इलियट वन-हैंड स्पर्धा के चैंपियन बने थे, जबकि डेनमार्क के विगो जेनसेन पहले-टू-हैंड ओलंपिक चैंपियन बने थे।

सन् 1904, 1908 और 1912 के ओलंपिक से वेटलिफ्टिंग को बाहर रखा गया था। बेल्जियम के एंटवर्प 1920 ओलंपिक में वेटलिफ्टिंग ने फिर से वापसी की और तब से ये खेल ओलंपिक का स्थायी खेल बन गया। 1924 के पेरिस ओलंपिक के बाद एक-हाथ से लिफ्ट करने वाले इवेंट को बंद कर दिया गया था। ओलंपिक वेटलिफ्टिंग ने पहले 'क्लीन एंड प्रेसÓ, स्नैच और क्लीन एंड जर्क इवेंट आयोजित किए। हालांकि, ये स्पर्धाएं 1972 म्यूनिख ओलंपिक के साथ शुरू हुईं। क्लीन एंड प्रेस- तीन चरण की प्रक्रिया के साथ क्लीन एंड जर्क का ही दूसरा रूप था। हालांकि वेटलिफ्टरों को इसकी तकनीकों को पहचानने में कठिनाई हुई, जिसके कारण इस स्पर्धा को भी बंद कर दिया गया।

1920 के ओलंपिक में पहली बार 60 किग्रा से लेकर 825 किग्रा तक की वजन श्रेणियां शामिल की गईं। सबसे कम वजन श्रेणी (52 किग्रा) की शुरुआत म्यूनिख में 1972 के ओलंपिक में हुई थी, ये वो संस्करण था जिसमें सबसे अधिक +110 किग्रा श्रेणी की स्पर्धा भी देखी गई थी। हालांकि शुरुआत में ये खेल सिर्फ पुरुषों के लिए ओलंपिक में रिजर्व किया गया था, 2000 के सिडनी ओलंपिक में पहली बार ओलंपिक में महिला वेटलिफ्टिंग इवेंट को शामिल किया गया था। वेटलिफ्टिंग हमेशा से ही भारतीय खेल इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। यही वह खेल था जिसने भारत को ओलंपिक में पहली महिला पदक विजेता दी। सिडनी 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी ने कांस्य पदक जीता था। पिछले कुछ सालों में भारत ने वेटलिफ्टिंग में अपना सितारा बुलंद रखा और वेटलिफ्टिंग स्टार्स ने अपनी पहचान बनाई। इनमें कर्णम मल्लेश्वरी, कुंजरानी देवी, मीराबाई चानू, सतीश शिवलिंगम, जेरेमी लालरिनुंगा और झिल्ली दलबेहेरा जैसी होनहार प्रतिभाओं ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान बनाई है।

कैसे खेला जाता है

खिलाड़ी के नाम का ऐलान होने पर वह मंच पर जाता है। यहां पर वह अपनी कैटगरी के मुताबिक वजन उठाता है। खिलाड़ियों के सामने लोहे की बार रखी होती है जिसके दोनों ओर प्लास्टिक प्लेट होती हैं जिनमें खिलाड़ी द्वारा चुना गया भार होता है। ओलिंपिक में खिलाड़ी स्नैच और क्लीन एंड जर्क दो चरणों में वजन उठाते हैं। जिस खिलाड़ी का दोनों चरणों के सर्वश्रेष्ठ स्कोर का जोड़ सबसे ज्यादा होता है वही विजेता होता है।

स्नैच वेटलिफ्टिंग

स्नैच वेटलिफ्टिंग के दौरान खिलाड़ी को वेट बार को एक ही झटके में उठाना होता है। इस दौरान बार उनके सामने रखा हुआ होता है। बार को उठाते समय दोनों हाथ नीचे की ओर होते हैं। बार को उठाते समय उन्हें ध्यान रखना होता है कि शरीर का कोई और अंग जमीन को न छुए। ऐसा होने पर लिफ्ट को सही नहीं माना जाता है। हर खिलाड़ी को तीन मौके दिए जाते हैं जिसमें से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को फाइनल स्कोर में शामिल किया जाता है।

क्लीन एंड जर्क वेटलिफ्टिंग

क्लीन एंड जर्क वेटलिफ्टिंग का दूसरा चरण है। खेल के इस पड़ाव में खिलाड़ी पर एक ही झटके में बार को ऊपर तक ले जाने का दबाव नहीं होता। खिलाड़ी पहली कोशिश में बार को कंधे तक ले जाता है। इस दौरान वह घुटने को मोड़ सकता वहीं बार को कंधे पर भी रख सकता है। इसके बाद दूसरे प्रयास में उसे बार को ऊपर तक ले जाता होता है। बिना हाथ और पैर मोड़े खिलाड़ी को तब तक वजन को लेकर खड़े रहना होता है जब तक रेफरी लिफ्ट को सही करार न दे। इसमें भी हर खिलाड़ी को तीन मौके दिए जाते हैं जिसमें से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को आखिर में जोड़ा जाता है। खिलाड़ी किस प्रयास में कितना वजन उठाएगा यह वह खुद तय करता है।

ओलिंपिक वजन कैटेगरी

पुरुष वर्ग- 61 किग्रा, 67 किग्रा, 73 किग्रा, 81 किग्रा, 96 किग्रा, 109 किग्रा

महिला वर्ग- 49 किग्रा, 55 किग्रा, 59 किग्रा, 64 किग्रा, 76 किग्रा, 87 किग्रा

कुछ अहम नियम

यदि कोई खिलाड़ी स्नैच में अपने तीन प्रयासों में से एक भी सही लिफ्ट करने में विफल रहता है, तो वो क्लीन एंड जर्क में आगे नहीं बढ़ सकता और प्रतियोगिता से बाहर हो जाता है। जब कोई टाई होता है तो वजन को उठाने में लिए जाने वाले समय के आधार पर  विजेता घोषित किया जाता है। निर्धारित समय के भीतर लिफ्ट शुरू न करने पर एथलीट्स को जुर्माना भरना पड़ सकता है।

वेटलिफ्टिंग का शारीरिक लाभ

तनाव होगा कम : जी हां वेटलिफ्टिंग का एक बड़ा फायदा यह है, कि आप खुद को तनाव मुक्त महसूस करते हैं। अगर आप नियमित तौर पर इसे अपने व्यायाम में शामिल करते हैं, तो आप मानसिक तनाव की समस्या को कोसों दूर कर सकते हैं।

शारीरिक आकार : वेट लिफ्टिंग का दूसरा फायदा यह है, कि इससे आपके शरीर की बनावट सुगठित होकर, शरीर को आदर्श आकार देती है, जिसे अंग्रेजी में फिगर कहा जाता है। इससे आपके व्यक्तित्व में भी उभार आता है, और आप पहले से बेहतर दिखाई देते हैं।

खुशहाली : शोध में यह बात सामने आई है, जो लोग व्यायाम के रूप में इसे 6 महीने तक सप्ताह में तीन बार शामिल करते हैं, वे खुश रहने के मामले में दूसरों की अपेक्षा बहुत आगे होते हैं। यह आपकी खुशी में आश्चर्यजनक वृद्धि करने में सहायक है।

पहनावा : इससे आपके शरीर पर कपड़े अपेक्षाकृत ज्यादा फिट होते हैं। इसका कारण है कि यह आपकी मसल्स में वृद्धि कर, वसा को धीरे-धीरे कम करता है, जिससे शरीर की बनावट में परिवर्तन आता है और आप जो भी पहनते हैं, वह आप पर अधिक फबता है।

वसा : लोगों में यह गलतफहमी होती है, कि केवल कार्डियो द्वारा जल्दी वसा को खत्म कर वजन कम किया जा सकता है। लेकिन यह तरीका तब गलत होता है, जब आप केवल कार्डियो व्यायाम द्वारा वजन कम करते हैं। क्योंकि इससे वसा के साथ आपकी कोशिकाएं भी टूटती हैं। इसलिए कार्डियो के साथ वेट लिफ्टिंग कर आप न केवल वजन घटाते हैं, बल्कि कोशिकाओं का निर्माण भी करते हैं।

लगातार कैलोरी कम होना : यह भी एक विशेष फायदा है, कि जब आप व्यायाम खत्म कर देते हैं, उसके बाद भी आप लगातार शरीर से कैलोरी कम कर रहे होते हैं। क्योंकि आपका शरीर व कोशिकाएं अपना काम कर रहे होते हैं।

बेहतर नींद : जी हां, यह आपको चैन की नींद सुलाने के लिए भी फायदेमंद है। व्यायाम के बाद होने वाली थकान आपको बिस्तर पर जाते ही नींद लाने में सहायक होती है, और निर्बाध रूप से सोने के लिए प्रेरित करती है।

हड्डियां बने मजबूत : वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है, कि वेट लिफ्टिंग व्यायाम से आपकी हड्डियां पहले से अधिक मजबूत होती हैं। उम्र के साथ-साथ हड्डियों का कमजोर होना सामान्य है, लेकिन इस व्यायाम से आप इसे कम कर सकते हैं।

रक्तचाप : इस तरह का व्यायाम आपके रक्तचाप को उच्च होने से रोकता है। ऐसे में आप का रक्तचाप सामान्य बना रहता है, और आपको हृदय संबंधी किसी भी प्रकार की समस्या से बचाता है। खासतौर से यह दिल के दौरे की संभावना को कम करता है।

कार्यक्षमता : वेट लिफ्टिंग से आपकी मसल्स मजबूत होती हैं और आपकी कार्य करने की क्षमता में वृद्धि होती है। इतना ही नहीं यह आपको सेहत के प्रति अनुशासन का पाठ भी पढ़ाता है।