गुजराती भाषा के युग प्रवर्तक माने जाते थे नर्मद जी: बांके बिहारी पांडे

- उन्होंने बताया कि नर्मद जी का जन्म 24 अगस्त 1833 को तथा मृत्यु 26 फरवरी 1886 को हुई थी l
- यह गुजराती के कवि, विद्वान एवं महान वक्ता थे, वे नर्मद के नाम से प्रसिद्ध है l उन्होंने ही 1880 के दशक में सबसे पहले हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का विचार रखा थाl
- गुजराती भाषा के युग प्रवर्तक माने जाने वाले रचनाकार थे। जिस प्रकार हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल के आरंभिक अंश को 'भारतेंदु युग' संज्ञा दी जाती है, उसी प्रकार गुजराती में नवीन चेतना के प्रथम कालखंड को 'नर्मद युग' कहा जाता है।
- भारतेंदु की तरह ही उनकी प्रतिभा भी सर्वतोमुखी थी। नर्मद ने नए विषयों पर पद्य और गद्य में रचनाएँ कीं।
- प्रकृति स्वतंत्रता आदि विषयों पर रचनाएँ आरंभ करने का श्रेय नर्मद को जाता है।
- नर्मद ने 22 वर्ष की उम्र में पहली कविता लिखी। तब साहित्य के विभिन्न अंगों को समृद्ध करने का क्रम आरंभ हो गया।
- कुछ समय तक उन्होंने मुम्बई में अध्यापक का काम किया, पर वहाँ का वातावरण अनुकूल न पाकर उसे त्याग दिया ।
- 23 नवंबर, 1858 को अपनी क़लम को सम्बोधित करके बोले- "लेखनी अब मैं तेरी गोद में हूँ।"
- 24 वर्षों तक वे पूरी तरह से साहित्य सेवा में ही लगे रहे। पहले उनकी रचना के विषय ज्ञान भक्ति वैराग्य आदि हुआ करते थे।
श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में अनूप कुमार ,सचिन सिंह परिहार ,चंद्रशेखर सिंह, शैलेश सिंह यादव ,अभिषेक शर्मा ,पायल जायसवाल , ओंकार पांडे, संतोष कुमार तिवारी प्रथम, शैलेंद्र कुमार यादव, विद्यासागर गुप्ता, विनोद कुमार, प्रवीण कुमार तिवारी, कुंदन कुमार ,रामचंद्र मौर्य, अभिषेक कुमार शुक्ला ,नागेंद्र कुमार शुक्ला, अजीत प्रताप सिंह, शंकरलाल पटेल, ऋचा गोस्वामी, दीक्षा पांडे ,अर्चना राय, किरन सिंह, जितेंद्र कुमार तिवारी, शिवजी राय ,अनिल उपाध्याय, संतोष कुमार तिवारी द्वितीय, रविंद्र कुमार द्विवेदी ,श्रवण कुमार तिवारी एवं अनुराग कुशवाहा प्रमुख रहे l