कार्डियो व्यायाम के लिए उपयुक्त खेल मुक्केबाज़ी

आधुनिक ओलंपिक की बात की जाए तो शौकिया मुक्केबाजी ने संयुक्त राज्य अमेरिका के सेंट लुइस में आयोजित हुए 1904 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में अपनी शुरुआत की। वहीं, 1912 में ये ओलंपिक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं था, लेकिन तब से, ये ग्रीष्मकालीन खेलों के हर संस्करण का हिस्सा रहा है। मुक्केबाजी के इतिहास का पता 1867 से लगाया जा सकता है, जब क्वींसबेरी नियम पहली बार प्रकाशित हुए थे। जॉन ग्राहम चेम्बर्स नामक एक वेल्श खिलाड़ी ने क्वींसबेरी नियमों को लिखा था, ये नियम मुक्केबाजी के लिए एक आचार संहिता को औपचारिक रूप देने की मांग करती है। इससे पहले मुक्केबाज़ी में बिना किसी निश्चित नियमों के पुरस्कार दिए जाते थे। पहली मुक्केबाजी चैंपियनशिप उसी वर्ष आयोजित की गई थी जबकि पहली आधिकारिक चैंपियनशिप 1880 में आयोजित की गई। दुनिया भर में इस खेल का तेजी से विकास हुआ और भारत में मुक्केबाजी की उपस्थिति का पहला उदाहरण 1925 में देखा गया, जब बॉम्बे प्रेसीडेंसी एमेच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन का गठन किया गया था। बॉम्बे शहर का नाम अब मुंबई हो गया है। तब का बॉम्बे भारत में औपचारिक रूप से मुक्केबाजी टूर्नामेंट आयोजित करने वाला पहला शहर था। अगले कुछ दशकों में भारत में मुक्केबाज़ी का धीरे-धीरे विकास हुआ। ब्रिटिश शासन से भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, 1949 में इंडियन एमेच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन का गठन किया गया था। भारत में पहली बार राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियनशिप 1950 में मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम में आयोजित हुई थी। वैश्विक स्तर पर भारत शौकिया मुक्केबाजी में चार प्रमुख आयोजनों में भाग लेता है। ओलंपिक, विश्व चैंपियनशिप, एशियन गेम्स और राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय मुक्केबाज़ प्रतिस्पर्धा करते हैं। ग्रीष्मकालीन खेलों में मुक्केबाजी लंबे समय से खेली जा रही है। भारत के पहले राष्ट्रीय मुक्केबाजी महासंघ के गठन से एक साल पहले ओलंपिक मुक्केबाजी में भारत ने पहली बार 1948 के लंदन ओलंपिक में हिस्सा लिया। जहां सात भारतीय मुक्केबाज - रबिन भट्टा, बेनॉय बोस, रॉबर्ट क्रैन्स्टन, मैक जोआचिम, बाबू लाल, जॉन न्यूटल, और जीन रेमंड ने लंदन 1948 के लिए क्वालीफाई किया। पुरुषों के बैंटमवेट (54 किग्रा) में बाबू लाल ने मुक्केबाजी में भारत के लिए पहली ओलंपिक जीत दर्ज की। इस दौरान उन्होंने राउंड ऑफ 32 में पाकिस्तान के एलन मोंटेइरो को हराया। हालांकि वो अगले दौर में प्यूर्टो रिकान के मुक्केबाज जुआन इवेंजेलिस्टा वेनेगस को मात देने में नाकाम रहे। हालांकि 1948 ओलंपिक खेलों के बाद भारतीय मुक्केबाज अगले चार ओलंपिक (1956, 1960, 1964 और 1968) तक किसी के लिए क्वालीफाई नहीं कर सके। इस सूखे को मेहताब सिंह, मुनिस्वामी वेणु और चंद्र नारायणन ने खत्म किया, इन सभी ने 1972 म्यूनिख ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया। तब से भारतीय मुक्केबाज प्रत्येक ओलंपिक खेलों का हिस्सा रहे हैं। ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज विजेंदर सिंह थे - जिन्होंने 2008 बीजिंग ओलंपिक में पुरुषों के मिडिलवेट (75 किग्रा) वर्ग में कांस्य पदक जीता था। लंदन 2012 ओलंपिक कार्यक्रम में महिला मुक्केबाजी की शुरुआत की गई और भारतीय दिग्गज मुक्केबाज़ एमसी मैरी कॉम ने उस वर्ष भारत का दूसरा ओलंपिक मुक्केबाजी पदक जीता। जहां इस दौरान मैरी कॉम ने फ्लाईवेट (51 किग्रा) वर्ग में कांस्य पदक जीता था।
मैरी कॉम ने सन् 2001 में प्रथम बार नेशनल वुमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती। अब तक वह 10 राष्ट्रीय खिताब जीत चुकी है। बॉक्सिंग में देश का नाम रोशन करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2003 में उन्हे अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया एवं वर्ष 2006 में उन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया गया। जुलाई २९, 2009 को वे भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार के लिए (मुक्केबाज विजेंदर कुमार तथा पहलवान सुशील कुमार के साथ) चुनीं गयीं। मध्यप्रदेश के ग्वालियर में स्त्रीत्व को नई परिभाषा देकर अपने शौर्य बल से नए प्रतिमान गढ़ने वाली विश्व प्रसिद्ध मुक्केबाज श्रीमती एमसी मैरी कॉम 17 जून 2018 को वीरांगना सम्मान से विभूषित किया गया। उन्होंने 2019 के प्रेसिडेंसीयल कप इोंडोनेशिया में ५१ किग्रा भार वर्ग में यह स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया की एप्रिल फ्रैंक को 5-0 से हराकर यह स्वर्ण पदक जीता। नई दिल्ली में आयोजित 10 वीं एआईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप 28 नवंबर, 2018 को उन्होंने 6 विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली पहली महिला बनकर इतिहास बनाया।
मुक्केबाज़ी में विजेता की घोषणा और नियम
मुक्केबाज़ी का नियम काफी सरल है। इस खेल में मुक्केबाज़ अपने प्रतिद्वंद्वी के सिर या धड़ पर मुक्के मारने की कोशिश करता है या कहें कि बॉक्सर अपने विरोधी को चकमा देते हुए उसे हिट करने की तलाश में रहता है। चोटों से बचने के लिए मुक्केबाज़ सुरक्षा देने वाले दस्तानों को पहनते हैं और इस खेल में बेल्ट के नीचे या सिर के पीछे कहीं पर भी प्रतिद्वंद्वी को मारना मना है। पुरुषों और महिलाओं दोनों के ओलंपिक बॉक्सिंग मुक़ाबले में तीन मिनट के तीन राउंड होते हैं। प्रत्येक राउंड के बाद एक मिनट का ब्रेक दिया जाता है। मुक़ाबले के दौरान मुक्केबाज़ में नॉक आउट या अंकों के ज़रिए विजेता की घोषणा की जाती है।
जब मुक्केबाज़ अपने प्रतिद्वंद्वी पर ऐसे मुक्के मारे कि वो बॉक्सिंग रिंग के अंदर ज़मीन पर चित हो जाए और रेफरी द्वारा 10 की गिनती के भीतर मैच को फिर से शुरू करने में असमर्थ नज़र आए तो यह उस मुक्केबाज़ के लिए एक नॉक आउट जीत कहलाती है। नॉक जीत के निर्णय में बाउट तुरंत समाप्त हो जाती है, और जीतने वाले बॉक्सर को विजेता घोषित कर दिया जाता है। मुक्केबाज़ी मुक़ाबला जो पूरे तीन राउंड तक चलता है, उसके विजेता का निर्णय अंकों के ज़रिए किया जाता है। रिंग के किनारे बैठे पांच जज दोनों मुक्केबाज़ों को लड़ते हुए ध्यान से देखते हैं। इस दौरान वो किसी मुक्केबाज़ द्वारा प्रतिद्वंद्वी के टार्गेट एरिया पर सही पड़े मुक्कों की गिनती के ज़रिए, मुक़ाबले में बॉक्सर के दबदबे, तकनीक व सामरिक श्रेष्ठता को ध्यान में रखते हुए अंक देते हैं।
हर राउंड के अंत में प्रत्येक जज निर्णय मानदंड के आधार पर किसी राउंड के लिए विजेता को निर्धारित करने के लिए 10 अंक देते हैं। राउंड में हारने वाले को उस राउंड में प्रदर्शन के आधार पर सात से नौ अंक दिए जाते हैं। मुक़ाबला खत्म होने के बाद प्रत्येक जज अंतिम विजेता को निर्धारित करने के लिए हर एक राउंड के स्कोर को जोड़ता है। एक मुक्केबाज़ सर्वसम्मत निर्णय से जीत सकता है यदि सभी पांच जजों का एक ही मत हो कि विजेता का दो या उससे अधिक राउंड में दबदबा रहा है। अगर किसी स्थिति में जजों का निर्णय अलग-अलग होता है तो बहुमत को ध्यान में रखा जाता है और विजेता को विभाजित निर्णय के द्वारा तय किया जाता है।
मुक्केबाजी में ट्रेनर और असिस्टेंट बॉक्सर को लड़ाई की रणनीति समझाते हैं। कटमेन जो कि डॉक्टर के रूप में रहता है, जो बॉक्सर के चेहरे पर लगने वाले कट का ध्यान रखता है। कट के कारण आंखों और शरीर में गंभीर चोट का खतरा होने पर लड़ाई रोक दी जाती है।
खेल की सामाग्री, पोशाक एवं मैदान
इस खेल के मैदान को रिंग कहा जाता है। इसका आकार कम-से-कम 12 फीट वर्गाकार और अधिक-से-अधिक 20 फीट वर्गाकार होता है। यह मंच के आकार का मैदान होता है, जो जमीन से दो-से तीन फीट की ऊंचाई पर होता है। इसमे चरो ओर रस्सियाँ लगी रहती है। इसका फर्श एक अंडर कवर से ढका रहता है।
कॉर्नर : बॉक्सिंग में हर मुक्केबाज को रिंग का एक कोना दिया जाता है। जहां राउंड के बीच में वह आराम करता है। यह कोना कॉर्नर कहलाता है। यहां बॉक्सर के साथ तीन और भी लोग ट्रेनर, असिस्टेंट और कटमेन होते हैं।
दस्ताने- क्योकि मुक्केबाज़ी के लिए हाथ के अग्रभाग का प्रयोग किया जाता है, अतः उँगलियो को चोट से बचाने के लिए दस्ताने पहनते है। इनके ऊपर का भाग काफी नर्म होता है, जो घातक चोटों से बचाता है। आमतौर पर दस्तानों का भार 16 औंस होता है।
पोशाक- प्रत्येक मुक्केबाज के लिए बनियान एवं निक्कर पहनना अनिवार्य होता है| दोनों एक ही समान रंग के होते है| दोनों प्रतियोगी अलग-अलग रंग की पोशाक धारण करते है| वे केवल कैनवास के जूते ही पहन सकते है।
दंत कवच- इस खेल में दाँतो पर भी प्रहार हो सकता है और इस प्रहार से दांत क्षतिग्रस्त हो सकते है, अतः दाँतो के सुरक्षा के लिए दंत कवच का प्रयोग किया जाता है। यह एक प्लास्टिक का लचीला टुकड़ा होता है, जिसका आकार अर्द्ध चंद्राकार होता है। इसे दाँतो व मसूड़ों के बीच फंसा दिया जाता है।
प्रोटेक्टर कप- यह एक ऐसा कवच है, जिससे लिंग की सुरक्षा की जाती है। मुक़ाबले के दौरान इस कप को जांघिए के अंदर धारण किया जाता है।
हेडगार्ड- प्रत्येक मुक्केबाज अपने सिर की सुरक्षा के लिए सिर पर हेलमेट पहनता है। इससे सिर की सुरक्षा सुनिश्चित हो जाती है।
स्वास्थ लाभ
स्वस्थ हृदय के लिए चिकित्सक और स्वास्थ विशेषज्ञ कार्डियो व्यायाम को आवश्यक मानते हैं और कार्डियो व्यायाम के लिए मुक्केबाज़ी अच्छा माध्यम है। जिसमें आपका आपका हृदय तेजी से पंप करता है और आपके फेफड़ों पर भी कार्य दबाव बढ़ता है। जिससे अधिक से अधिक कैलोरी जलती है और अतिरिक्त चर्बी समाप्त होती है। इससे रक्त परिसंचरण तंत्र में भी कई तरह के लाभ होते हैं।
जब आप मुक्केबाज़ी का निरंतर अभ्यास करते हैं तो आपकी शारीरिक क्षमता एक सामान्य व्यक्ति से कई गुना बढ़ जाती है क्योंकि आपके हाथ, कंधे, पैर और कोर की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। हाथ-पैरों में होने वाले दर्द और ऐंठन को कम करने में यह वर्कआउट फायदेमंद होता है।
मुक्केबाजी के अभ्यास आपके हाथ-आंख के समन्वय को बेहतर बनाने का काम करता है। हाथ-आँख का समन्वय केवल मुक्केबाज़ी तक उपयोगी नहीं होता है, यह ठीक मोटर कौशल बनाता है जो दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों जैसे कि कपड़े की बटनिंग, पेन पकड़ना और कई अन्य क्रियाओं के लिए मूल्यवान होते हैं।
इस खेल के अभ्यास से आप जीवन को अनुशासित बनाना सीखते हैं। जिसमें आप स्वस्थ संतुलित आहार खाते हैं, और समय के उचित उपयोग को लेकर प्रयासरत रहते हैं।
मुक्केबाजी प्रशिक्षण, आपकी सहनशक्ति का निर्माण करने में मदद करता है। जब आप पहली बार व्यायाम करते हैं तो संभावना है कि आपको बहुत लंबे समय तक लगातार व्यायाम करना मुश्किल होगा। लेकिन, जितना अधिक प्रशिक्षण करते हैं, उतनी ही अधिक आप सहनशक्ति का निर्माण करेंगे।