मनोवैज्ञानिक निबंध लेखक परंपरा के जनक थे आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी : बांके बिहारी पांडे

मातृ सुख के अभाव के साथ-साथ विमाता से मिलने वाले दुःख ने उनके व्यक्तित्व को अल्पायु में ही परिपक्व बना दिया। अध्ययन के प्रति लग्नशीलता शुक्ल जी में बाल्यकाल से ही थी। किंतु इसके लिए उन्हें अनुकूल वातावरण न मिल सका। मिर्जापुर के लंदन मिशन स्कूल से 1901 में स्कूल फाइनल परीक्षा (FA) उत्तीर्ण की। उनके पिता की इच्छा थी कि शुक्ल जी कचहरी में जाकर दफ्तर का काम सीखें, किंतु शुक्ल जी उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। पिता जी ने उन्हें वकालत पढ़ने के लिए इलाहाबाद भेजा पर उनकी रुचि वकालत में न होकर साहित्य में थी। अतः परिणाम यह हुआ कि वे उसमें अनुत्तीर्ण रहे।
शुक्ल जी के पिताजी ने उन्हें नायब तहसीलदारी की जगह दिलाने का प्रयास किया, किंतु उनकी स्वाभिमानी प्रकृति के कारण यह संभव न हो सका। 2 फरवरीसन् 1941 को हृदय की गति रुक जाने से शुक्ल जी का देहांत हो गयाl शत शत नमन करने वालों में अनूप कुमार, सचिन सिंह परिहार, चंद्रशेखर सिंह, शैलेश सिंह यादव ,अभिषेक शर्मा,पायल जायसवाल , ओंकार पांडे, संतोष कुमार तिवारी प्रथम, शैलेंद्र कुमार यादव, विद्यासागर गुप्ता, विनोद कुमार, प्रवीण कुमार तिवारी, कुंदन कुमार, रामचंद्र मौर्य, अभिषेक कुमार शुक्ला ,नागेंद्र कुमार शुक्ला, अजीत प्रताप सिंह, शंकरलाल पटेल, ऋचा गोस्वामी, दीक्षा पांडे,अर्चना राय, किरन सिंह, जितेंद्र कुमार तिवारी, शिवजी राय,अनिल उपाध्याय, संतोष कुमार तिवारी द्वितीय, रविंद्र कुमार द्विवेदी, श्रवण कुमार तिवारी एवं अनुराग कुशवाहा प्रमुख रहे।