भारत के इस अमृत काल में मन, समाज व राष्ट्र की दुर्बलता को दूर करें : सरकार्यवाह  

भारत के  इस अमृत काल में मन, समाज व राष्ट्र की दुर्बलता को दूर करें : सरकार्यवाह  
भारत के  इस अमृत काल में मन, समाज व राष्ट्र की दुर्बलता को दूर करें : सरकार्यवाह  
  • देश के नवजवान अपनी दीक्षा, सबकी रक्षा व समरसता को अपने जीवन में उतारे: सरकार्यवाह  
  •  केवल भारत माता की जय बोलने से देश भक्ति नहीं होती, निःस्वार्थ सेवा जरूरीः  संघ

 सुलतानपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने आज यहॉं देश व समाज को मकर संक्रान्ति पर सामाजिक समरसता कायम करने का संकल्प दिलाते हुए कहा कि भारत के अमृत काल में मन, समाज, राष्ट्र की कमजोरी दुर्बलता को दूर करना पडे़गा। विश्व के सामने एक श्रेष्ठ समाज के नाते खडे़ होने का सौभाग्य प्राप्त होगा। हम अपने जीवन काल में यह दिखा सकते हैं। भारत के अन्दर यह क्षमता है, भारत करवट ले रहा है। भारत के उत्थान अब प्रारम्भ हो गया है इसीलिए हमें अंधकार को दूर कर प्रकाश को ले जाकर जहॉं-जहॉं अधकार हैं, वहॉं रोशनी पहुंचना पडे़गा। चलो जलाये दीप वहां जहॉं अभी भी अंधेरा हैं, भारत के लिए यह एक स्वर्णिम अवसर है।

      सुलतानपुर में अपने दो दिवसीय प्रवास के दौरान आज मंकर संक्रान्ति उत्सव पर स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए श्री दत्तात्रेय ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत के नव संक्रान्ति के जिस महाभियान को लेकर चला है, उसमें देश के नवजवान ‘अपनी दीक्षा, सबकी रक्षा, समानता के समरसता के इस मंत्र को अपने जीवन में उतारे और नव संक्रमण का काल इस धरती पर उतारने के प्रयत्न सामूहिक प्रयास, संकल्प, भाईचारे, प्रमाणिक पुरूषार्थ से करके दिखायें।

       उन्होंने कहा कि यदि श्रीकृष्ण की महानता, श्रीराम की श्रेष्ठता का अपने जीवन में स्थान नहीं हैं। हमारे जीवन के आचरण, व्यवहार, परिवेष, घरों, परिसर, परिवेश में उतारना नहीं है तो केवल रामजी की श्रेष्ठता बताने से कुछ नहीं होगा। रामजी के नाम से नहीं रामजी के काम से मनुष्य ऊपर उठता है। हॉं इतना जरूर हैं कि राम जी के काम करते हुए रामजी का नाम लेना पड़ता हैं। जैसे भारत माता की जय बोलने से देश भक्ति नहीं होती।

भारत माता के जयकार के लिए जीवन में प्रामाणिता से निस्वार्थ, बुद्धि, प्रयत्न और परिश्रम से करेगा तभी भारत माता की जय बोलने के लिए नैतिक अधिकार मिलता हैं। समाज हमें सब कुछ देता हैं, हम क्या देते हैं, यह सोचना पड़ेगा। इसलिए भारत माता की जय बोलना ही नहीं उसके लिए काम भी करना पड़ता हैं। राम जी के नाम लेने से नहीं, राम जी के काम करना पड़ता हैं। यह मेरे, वह पराये हैं यह सोच छोटे दिमाग के लोग है। जिनके अन्दर बडप्पन हैं उसके लिए तो सारा विश्व ही कुटुम्ब हैं। सृष्टि किसी के साथ भेदभाव नहीं करती है।

सूर्य, नदी, पेड़ सभी समान रूप से सभी को सेवा देते हैं। समाज ने मनुष्य को बांट दिया। भगवान ने नहीं बनाया मन्दिर में प्रवेश नहीं कुछ लोंगो का पानी लेने का अधिकार नहीं। मनुष्य इस अंधकार में है। ईश्वर सबत्र हैं इस सत्य को समझने के प्रयत्न नहीं करते तो हम अंधकार में ही रहेंगे। अपनी संस्कृति की श्रेष्ठता केवल उपदेश से, म्यूजियम में, प्रदर्शनी मेें, ग्रंथों में भाषण, संगीत, नृत्य से सिद्ध नहीं होगा। यह सब समझाने के लिए है लेकिन हम जीवन में उतारेगें नहीं तों वह केवल और केवल पुस्तक में रह जायेंगे। महापुरूषों के प्रवचन तक सीमित रह जायेंगे। इसलिए भारत को इन मानको पर एक समाज तैयार करना है। 

        उन्होंने कहा कि हमने एक हजार वर्ष के संघर्ष से कई प्रकार के अनुभव खोयेे, अपमान सहन किये, दमन चक्र चला, गुलाम बन कर रहें। हमारे पूर्वजों ने कितने प्रकार के कष्ट को सहन किया, त्याग और बलिदान करके इस देश को स्वतंत्र बनाने के लिए उन्होंने प्रयत्न किया। उनका भारत के बारे में क्या सपना था ? उस सपने को हम समझे, उसको साकार करने के लिए आवश्यक प्रयत्न जीवन में करके दिखाये। भारत के अन्दर बुद्धि, प्रतिभा की कमी नहीं है। दुनिया के सामने हमारा आई.क्यू. कम नहीं हैं। अपने लोगों में उत्साह भरने  व  चेतना जागृत करने के लिए हमारे देश के महापुरूषों की मालिका (माला) दुनिया के किसी भी देश की सभ्यता से कम नहीं बल्कि सौ गुना अधिक है।

देश के नवजवान के पास चयनित क्षेत्र में दुनिया के किसी भी देश के सामने आगे बढ़ने के लिए आवश्यक बराबरी से अधिक क्षमता है। हम विज्ञान, गणित, भाषा, संस्कृति में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं इसलिए अपने अन्दर की क्षमता को जागृत करें। उसके एक संगठित प्रयत्न से आगे बढ़ायें। ऐसे प्रयत्न में हम सब के साथ समानता से हिन्दवः सोदरा सर्वें न हिन्दू पतितोभवेत् मम दीक्षा हिन्दु रक्षा मम मंत्र समानता। हमारे लिए सभी भाई-बहन है। कोई पतित नहीं, कोई घृणित नहीं। अपनी दीक्षा, सबकी रक्षा अपना मंत्र समानता के समरसता के इस मंत्र को हम जीवन में उतारे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत के इस एक नव संक्रान्ति के महाभियान को लेकर चला है। ऐसे एक नव संक्रमण का काल इस धरती पर उतारने के प्रयत्न हम सब के सामूहिक प्रयास, संकल्प, क्रमर्ठता , भाईचारे, प्रमाणिक पुरूषार्थ से संभव है। हम मंकर संक्रान्ति के शुभ पर्व पर संकल्प लेकर उस दिशा में सभी मनोयोग से लगे ऐसी प्रार्थना है।

      हमारे पूर्वजों ने अपने अनुभव से कहा कि जब अपने अन्दर के अंधकार को दूर करते हो तब आप के अन्दर के परमात्मा आपको दिखाई देते हैं। इसलिए मकर संक्रान्ति के संदेश सृष्टि के अंधकार कम होते होते प्रकाश ज्यादा होना केवल उतना ही नहीं वह तो वास्तविकता है लेकिन उसका संदेश यह है हम अपने अंदर के अंधकार को दूर करते हुए प्रकाश लायेगे तो हम अपने को समझेगें अपने ईश्वर को देख पायेगें। जो महापुरूष, महाविभूति, ज्ञानी लोगे इस प्रकार के प्रत्यन्त करते हुए अपने अन्दर के ईश्वर को देखा उनके पद चिन्हों पर चलने के लिए समाज तैयार होता हैं।

समाज कहता है कि उन्होंने देखा हैं मंत्रदष्टा, ऋषि है और इस ईश्वर परमात्मा को देखने के लिए एक अनादि अनन्त तत्व, शक्ति हैं। सृष्टि को चलाने वाले भगवान, ईश्वर, ब्रह्मा चेतना कहो वह अनुभव में आने चाहिए। जब मनुष्य इस दिशा में प्रयत्न करते करते जायेगा तो वह अपने अन्दर के ईश्वर को नही देखता लेकिन उसे लगता है कि वह सब जड़ चेतन में हैं। यह वहीं है यह केवल भावुक होकर बोलने वाली बात नहीं है, ईश्वर भक्ति के कारण एक अन्ध श्रद्धा नहीं है। यह केवल कवि कल्पना नहीं हैं यह वैज्ञानिक ढ़ग से शास्त्रीय पद्धति से सिद्ध हुई बात है। सब के अन्दर वह है। हमने उन्हें ईश्वर कहा है यह एक संकेत है।

       वैज्ञानिक जगदीष चन्द्र ने पौधें में भी जीव को प्रयोग से सिद्ध किया हैं। राम चरित्र मानस में तुलसीदास ने कहा कि ’सीता राम मय सब जग ज्ञानी’ सबके अन्दर राम हैं। एकलब्य ने द्रोण का शिष्य बनने के लिए प्रयत्न किया। बाद में द्रोण जी की मूर्ति रखकर अभ्यास कर सिद्धहस्त बन गये। अर्जुन से कम नहीं ऐसे उनकी स्थिति गुरूभक्ति, श्रद्धा और प्रयत्न के कारण। इस कहानी का संदेश व्यक्ति को जन्म के आधार पर उंच-नीच नहीं मानना चाहिए। लेकिन समाज में ऐसी स्थितियां आ गयी। भारत के सभ्यता संस्कृति के सोने की चिड़िया, अत्यन्त श्रेष्ठ, विष्व गुरू हम रहे यह सब सूर्य प्रभात से लेकर मध्यानकाल में रहा, लेकिन अपनी ही सभ्यता में थोड़ा अन्धकार भी आ गया, तमस में चले गये। समाज अपने को बचाने के लिए कई प्रकार के गलत रास्तें भी अपनायें मनुष्य बचाने के लिए कुछ भी कर सकता हैं, नाम छुपाता, तमाम झूठ बोलता है।

यह कुछ बाते अपने शरीर में प्रवेश कर ली। यह भारत की संस्कृति नहीं है, हमारी कमियां हैं कितने भी मनुष्य शुद्ध हो पसीने, धूल के कारण मलिनता आ जाती है। उसको समय समय पर साफ करना पड़ता है। समाज शरीर को भी ऐसे नहलाना पड़ता हैं। यह कार्य समय समय पर संतों, ज्ञानियों, ऋषियों, संतों, समाज सुधारकों ने साबन लगा लगा कर मलिनता को दूर करने का किया हैं इसलिए हम उनकी पूजा करते हैं। यह समाज सुधारक, संत, ज्ञानी ऋषि है।

    कार्यक्रम में मंच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त संघचालक डॉ. विश्वनाथ लाल निगम, नगर संघचालक अमर पाल सिंह रहे। अतिथि परिचय नगर कार्यवाह अजय सिंह तथा एकल गीत अभिषेक शुक्ल ने प्रस्तुत किया। शारीरिक कार्यक्रम विभाग शारीरिक शिक्षण प्रमुख अशोक मिश्र ने कराया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से संघ के क्षेत्र प्रचारक अनिल, प्रान्त प्रचारक रमेश, सह प्रान्त प्रचारक मुनीष, प्रान्त प्रचारक प्रमुख राम चन्द्र, विभाग प्रचारक अजीत, विभाग संघचालक डॉ. रमाशंकर मिश्र, विभाग कार्यवाह नवीन श्रीवास्तव, जिला संघचालक डॉ. ए.के. सिंह, जिला सह संघचालक अजय गुप्ता व जिला कार्यवाह डॉ0 पवनेश मिश्र, जिला प्रचारक आशीष, दिलीप बरनवाल रहे।