भाला फेंक : शारीरिक शक्ति को बढ़ाने वाला खेल

भाला फेंक : शारीरिक शक्ति को बढ़ाने वाला खेल

वर्तमान समय में खेले जाने वाले कई विश्व विख्यात खेल प्राचीन काल में दैनिक जीवन और संघर्ष का हिस्सा हुआ करते थे। लेकिन समय के साथ इन खेलों का स्वरूप बदला और ये खेल लोगों के मनोरंजन का साधन बन गए। इन खेलों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाने लगा। इन्हीं खेलों में भाला फेंक या जेवलिन थ्रो भी शामिल है। यह खेल शिकार और युद्ध में प्रयोग किए जाने के लिए भाला शस्त्र के रूप में उत्पन्न हुआ। पुरापाषाण काल में जहां आदिमानव में जानवरों के जंगली जानवरों से सुरक्षा एवं शिकार के लिए लकड़ी और नुकीले पत्थर से बने भाले का प्रयोग करते थे। वहीं, मानव जाति और सभ्यता के विकास के बाद इसे युद्ध में शस्त्र के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। वहीं, अब ये खेल विश्व प्रसिद्ध लोकप्रिय खेल के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुका है। 

जेवलिन थ्रो का अर्थ है, भाला फेकना। यह एक ओलिंपिक खेल है। पुराने समय में भारत में भाला फेक, तीरंदाजी और तलवारबाजी जैसे खेल महाभारत व रामायण काल से ही चला आ रहा है। भाले का प्रयोग दुश्मन के ऊपर फेक कर किया जाता है। यह लकड़ी का बना होता है, और आगे के हिस्से नुकीले होता था। जो की हल्की धातु से बनाया जाता था। जिस से उसे ज्यादा दूर तक फेका जा सके। युद्ध के समय सेना में सबसे आगे भाला धारी सेनिको को ही रखा जाता था। राजा व महाराजा सुरक्षा के लिय सेनिको को भाले दिय जाते थे। परन्तु वर्तमान समय में इसे एक खेल के रूप में जाना जाता है।

 708 ईसा पूर्व में पेंटाथलॉन के हिस्से के रूप में भाला फेंक को प्राचीन ओलंपिक खेलों में जोड़ा गया था। इसमें दो घटनाएं शामिल थीं, एक दूरी के लिए और दूसरी लक्ष्य को मारने में सटीकता के लिए। इस प्रतियोगिता में महिला और पुरुष दोनों ही शामिल थे। 1870 के दशक की शुरुआत में जर्मनी और स्वीडन में भाला जैसे डंडे को लक्ष्य में फेंकना शुरू किया गया था। स्वीडन में, ये ध्रुव आधुनिक भाला में विकसित हुए, और उन्हें दूरी के लिए फेंकना वहां और फिनलैंड में 1880 के दशक में एक आम घटना बन गई। अगले दशकों में नियम विकसित होते रहे। मूल रूप से, भाला बिना किसी रन-अप के फेंका जाता था, और गुरुत्वाकर्षण के केंद्र में उन्हें पकड़कर पकड़ना हमेशा अनिवार्य नहीं होता था। 1890 के दशक के अंत में सीमित रन-अप पेश किए गए, और जल्द ही आधुनिक असीमित रन-अप में विकसित हुए।

 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में, अधिकांश भाला प्रतियोगिताएं दो-हाथ वाली थीं। इम्प्लीमेंट को दाहिने हाथ से और बाएं हाथ से अलग-अलग फेंका जाता था, और प्रत्येक हाथ के लिए सबसे अच्छे अंक एक साथ जोड़े जाते थे। 1912 में ओलंपिक में दोनों हाथों की प्रतियोगिता केवल एक बार आयोजित की गई थी। एक अन्य प्रारंभिक संस्करण फ्रीस्टाइल भाला था, जिसमें गुरुत्वाकर्षण के केंद्र में भाला को पकड़कर पकड़ना अनिवार्य नहीं था। ऐसी फ्रीस्टाइल प्रतियोगिता 1908 के ओलंपिक में आयोजित की गई थी, लेकिन उसके बाद कार्यक्रम से हटा दिया गया। पहली बार महिलाओं में प्रतियोगिता में हिस्सेदारी 1909 में फ़िनलैंड में दर्ज की गयी। मूल रूप से, महिलाओं ने पुरुषों के समान ही उपकरण फेंके। 1920 के दशक में महिलाओं के लिए एक हल्का, छोटा भाला पेश किया गया था। 1932 में ओलंपिक कार्यक्रम में महिला भाला फेंक को जोड़ा गया।

लंबे समय तक ठोस लकड़ी और एक स्टील की नोक के साथ बने भाले का इस्तेमाल किया जाता रहा। खोखला, अत्यधिक वायुगतिकीय हेल्ड भाला, जिसका आविष्कार अमेरिकी थ्रोअर बड हेल्ड द्वारा किया गया था और उनके भाई डिक द्वारा विकसित और निर्मित किया गया था, 1950 के दशक में पेश किया गया था। तेजी से लगातार फ्लैट या अस्पष्ट रूप से फ्लैट लैंडिंग की प्रतिक्रिया के रूप में, संशोधित भाला के साथ प्रयोग 1980 के दशक की शुरुआत में शुरू हुए।

भाला फेंक में भारत के चर्चित खिलाड़ी

भारत ने 1900 में हुए दूसरे ओलिंपिक गेम्स में पहली बार हिस्सा लिया था। 1900 ओलिंपिक में ब्रिटिश इंडिया की ओर से खेलते हुए स्प्रिंटर नॉर्मन प्रिटचार्ड ने दो सिल्वर मेडल जीते थे। लेकिन, प्रिटचार्ड अंग्रेज थे भारतीय नहीं। भाला फेंक में भारत के चर्चित खिलाड़ियों में नीरज चोपड़ा, जोहानिस वेटर, शिवपाल सिंह, केशोर्न वाल्कॉट, एंडरसन पीटर्स, अरशद नदीम, जूलियस येगो, जैन जेलेजनी, गैटिक्स चैक्स का नाम शामिल रहा है। इनमें विश्व पटल पर छाप छोड़ने वाले लोकप्रिय खिलाड़ी नीरज चोपड़ा रहे हैं, जिन्होंने टोक्यो ओलिंपिक 2020 में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। इसी के साथ वो ओलिंपिक में भारत को स्वर्ण पदक जिताने वाले पहले एथलीट बने। प्रतियोगिता के फाइनल राउंड में नीरज ने पहले अटैम्प्ट में 87.03 मीटर और दूसरे अटैम्प्ट में 87.58 मीटर दूर भाला फेंका था। जबकि तीसरे अटैम्प्ट में उन्होंने 76.79 मीटर दूर भाला फेंका था। चौथे और पांचवें अटैम्प्ट में उन्होंने फाउल थ्रो किया। छठवें अटैम्प्ट में उन्होंने 84.24 मीटर दूर भाला फेंका और स्वर्ण पदक अपने नाम किया।

नीरज चोपड़ा का जन्म 24 दिसंबर 1997 को हरयाणा राज्य के पानीपत नामक शहर के एक छोटे से गाँव खांद्रा में एक किसान रोड़ समुदाय में हुआ था। नीरज के परिवार में इनके पिता सतीश कुमार पेशे से एक छोटे किसान हैं और इनकी माता सरोज देवी एक गृहणी है। जैवलिन थ्रो में नीरज की रुचि तब ही आ चुकी थी जब ये केवल 11 वर्ष के थे और पानीपत स्टेडियम में जय चौधरी को प्रैक्टिस करते देखा करते थे। उन्होंने चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज में पढ़ाई की। साल 2016 में पोलैंड में हुए आईएएएफ चैंपियनशिप में 86.48 मीटर दूर भाला फेंककर स्वर्ण पदक जीता था। उनके इस प्रदर्शन के बाद उन्हें सेना में अधिकारी नियुक्त किया गया था।

2016 में दक्षिण एशियाई खेलों को दौरान 82.23 मीटर दूर भाला फेंककर उन्होंने गोल्ड मेडल पर कब्जा किया। इसके बाद 2017 में नीरज ने 85.23 मीटर का थ्रो कर एशियन एथलेक्टिस चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। साल 2018 में एशियाई खेलों का आयोजन इंडोनेशिया के जकार्ता में किया गया। इस एशियाड में नीरज चोपड़ा ने 88.06 मीटर दूर भाला फेंक स्वर्ण पदक जीता। वह एशियाई और ओलिंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत के पहले एथलीट हैं।

भाला फेंकने का तरीका

भाला फेंक में प्रतिभागी धातु की नोक से भाला फेंकने का प्रयास करते हैं जहाँ तक वे कर सकते हैं। इसके लिए शक्ति, शक्ति, समन्वय, सटीकता और समय के मिश्रण की आवश्यकता होती है। अपनी छोटी उंगली को भाला के बिंदु के सबसे करीब रखते हुए, एथलीट को भाला को उसकी रस्सी से पकड़ना चाहिए। एथलीट को एप्रोच और थ्रो के दौरान किसी भी बिंदु पर अपनी पीठ को लैंडिंग क्षेत्र की ओर नहीं मोड़ना चाहिए, अपने फेंकने वाले हाथ के ऊपरी हिस्से पर भाला फेंकना चाहिए, और किसी भी समय गलत रेखा को पार नहीं करना चाहिए, जिसे स्क्रैच लाइन भी कहा जाता है। समय। इसके अलावा, भाला टिप पहले और निर्दिष्ट 29-डिग्री क्षेत्र के भीतर उतरना चाहिए। थ्रो को उस बिंदु से मापा जाता है जहां टिप पहले जमीन से टकराती है। एथलीट आमतौर पर एक प्रतियोगिता के दौरान तीन से छह बार फेंकते हैं। एक टाई के मामले में, जो एथलीट अगला सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेगा, उसे विजेता घोषित किया जाएगा। एक योग्यता सत्र आमतौर पर प्रमुख चैंपियनशिप में फाइनल के बाद होता है।

खेल का मैदान

-भाला फेक एक ट्रैक और फिल्ड इवेंट है, जिसमे दौड़ना, कूदना, और फेकना आदि एथलेटिक प्रतियोगिताएं शामिल है। यह आउटडोर खेल है।

-वर्तमान समय में भारत में बहुत लोगप्रिय खेल है। इस खेल में भारत के बहुत से खिलाड़ियों ने अंतरास्ट्रीय स्तर पर पदक प्राप्त किय है।

-खेल में फेके जाने वाली भाले की लम्बाई 8 फ़ीट 2 इंच होती है। भाला फेक पुरुष इवेंट को डिकैथलॉन कहा जाता है, और महिला इवेंट को हेप्टाथलॉन कहा जाता है। ये दोनों एक -एक ही इवेंट है।

पुरुष खिलाड़ियों के लिए - भाले का वजन 800 ग्राम और लंबाई 2.6 व 2.7 मीटर (8 फीट 6 इंच और 8 फीट 10 इंच)।

महिला खिलाड़ियों के लिए - भाले का वजन 600 ग्राम और लंबाई 2.2 और 2.3 वर्ग मीटर।

भाला फेंक खेल के नियम

-भाला फ़ेखते समय उसको कंधे के ऊपर से फेखा फेखा जाता है।

-भाले की लम्बाई 2.5 मीटर होती है।

-आप भाला फेकने से पहले भाला फेकने वाली दिशा में पीठ नहीं करते है।

-अगर भाला फ़ेखते समय मैदान के छोर या सिरों पर बने रेखा को खिलाडी के शरीर का कोई भी हिस्सा छूता है, तो वह खेल का उलंघन माना जाता है।

-इस खेल में सही थ्रो वो ही माना जाता है, जिसमे भाले का सिरा जमीन में घुस जाये या भाला जमीन पर खड़ा रहे।

-खेल के दौरान खिलाडी को तीन बार भाला फेकने का अवसर दिया जाता है, जो सबसे ज्यादा दुरी तक भाला फेकता है, वही विजयता होता है।

-अगर भाला फेकते समय भाले का छोर टूट जाये या भाला खंडित हो जाये तो प्रयास विफल माना जाता है।

भाला फेंक में फाउल

  • अगर भाला फेकते समय आप भाला जमीन को चुने से पहले आप भाला फेखी गयी दिशा में मुँह करते है, तो फ़ाउल माना जाता है।
  • आप अगर भाला फेखने से पूर्व या भाला जमीन को चुनी से पहले आपके शरीर का कोई भी हिस्सा सिमा रेखा या बॉउंड्री लाइन को छूता है। तो उसे फ़ाउल माना जाता है।
  • भाला फेकने के दौरान भाला जमीन के अंदर नहीं लगता या व खड़ा नहीं रहता तो फ़ाउल माना जाता है।
  • अगर आप ऐसा नहीं कर पाते तो फ़ाउल माना जाता है।
  • अगर आप ऐसा नहीं कर पाते तो फ़ाउल माना जाता है।